Personal Finance निजी/व्यक्तिगत वित्त

 

निजी/व्यक्तिगत वित्त

Personal Finance

नमस्कार पाठकोंस्वागत है आपका हमारे ब्लॉग-पोस्ट  PoliticsnPoliticians.blogspot.com परदोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगें :


निजी/व्यक्तिगत वित्त (Personal Finance ) क्या है?

निजी/व्यक्तिगत वित्त के शोधक कौन हैं?

निजी/व्यक्तिगत के पांच मुख्य घटक (Components) क्या हैं?

निजी/व्यक्तिगत वित्तीय योजना के सात महत्वपूर्ण चरण कौन से हैं?

निजी/व्यक्तिगत वित्त का 50%, 30% व 20% का नियम कैसे काम करता है?

निजी/व्यक्तिगत वित्त के चार स्तंभ कौन से हैं?

क्या निजी/व्यक्तिगत वित्त एक कला है?

    तो पाठकों मैं आशा करता हूँ कि आप इस ब्लॉग को रुचिपूर्वक पढ़ेंगें और जानकारी अच्छी लगने पर इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करेंगे.


    निजी/व्यक्तिगत वित्त (Personal Finance ) क्या है?

    निजी/व्यक्तिगत वित्त एक वित्तीय प्रबंधन (Financial Management) की विधि हैं जिसमें कोई व्यक्ति या परिवार अपनी वर्तमान आवश्यकताओं (Needs) की पूर्ति करते हुए, भविष्य में होने वाली मौद्रिक (Monetary) आवश्यकताओं हेतु अपनी आय का कुछ अंश बचाकर रखता है ताकि भविष्य में उसे आर्थिक सकंट का सामना न करना पड़े. किसी व्यक्ति या परिवार को अपने पूरे जीवन में तर्कसंगत वित्तीय निर्णय (Financial Decision) लेने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत वित्त शिक्षा की आवश्यकता होती है। 

    निजी/व्यक्तिगत वित्त के शोधक (Researcher) के रूप में हेज़ल किर्क को जाना जाता है उन्होंने 1920 में में निजी/व्यक्तिगत वित्त का शोध (Research) किया. इससे पूर्व तक यह विषय विद्यालय और महाविद्यालयों में गृह अर्थशास्त्र के रूप में पढ़ाया  जाता था . शिकागो विश्वविद्यालय में उनके शोध प्रबंध ने उपभोक्ता अर्थशास्त्र और पारिवारिक अर्थशास्त्र की नींव रखी. उसी विश्वविद्यालय में गृह अर्थशास्त्र की प्रोफेसर मार्गरेट रीड को उपभोक्ता व्यवहार और घरेलू व्यवहार के अध्ययन में अग्रणी माना जाता है.

 



 

निजी/व्यक्तिगत के पांच मुख्य घटक (Components):

1.    आय (Income) : आय एक खर्च और बचत है जिसको एक निश्चित समय सीमा के भीतर मौद्रिक रूप में प्राप्त किया जाता हैं. आय से हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर व्यय करते हैं. वही कुछ पैसे अपने भविष्य के सुरक्षा के लिए बचत के रूप में रख लेते हैं. आय के 5 मुख्य स्रोत होते हैं:वेतन/मजदूरी, घरेलू संपत्ति  से आय, कारोबार या पेशे से लाभ, पूंजीगत लाभ और अंतिम अन्य स्रोत से आय.

2.    खर्च (Spending) : अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हम अपनी आय के जिस हिस्से को खर्च करते हैं उसे खर्च/खपत/व्यय कहते हैं. आय के एक बड़ा हिस्सा रोजमर्रा की आवश्यकताओं (Daily Needs) की पूर्ति पर खर्च किया जाता है.

 

    

 चित्र : निजी/व्यक्तिगत वित्त के पांच घटक

3.    बचत (Savings) : अगर आय में से खर्च को घटा दिया जाए तो हमें शुद्ध बचत का पता चलता है. बचत का हम कुशलतापूर्वक उपयोग कर अपनी आय को और बढ़ा सकते हैं.

4.    निवेश (Investments) : निवेश का संबंध आय के उस भाग से है जिससे किसी वस्तु, संपत्ति, उत्पाद या किसी अन्य संपत्ति को खरीद कर, भविष्य में आय उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है.

5.    संरक्षण (Security) : संरक्षण का संबंध उन सभी तरीकों से जिसे लोग खुद को आकस्मिक  घटनाओं (Accidental Events) से बचाने के लिए करते हैं. इस प्रकार संरक्षण के रुप में हम जीवन बीमा (Life Insurance), स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance), दुर्घटना बीमा (Accidental Insurance), संपत्ति और सेवानिवृत्ति योजना शामिल हैं. परिवार के जीविका उपार्जक (Livelihood Earners) का बीमा अवश्य होना चाहिए ताकि किसी भी आकस्मिक स्थिति में परिवार की आर्थिक सुदृढ़ता बनी रहे.

हालांकि व्यक्तिगत वित्त के कई पहलू हैं, लेकिन ये पांच घटक आपकी व्यक्तिगत वित्तीय योजना को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

  

निजी/व्यक्तिगत वित्तीय योजना के सात महत्वपूर्ण चरण:

1.  1. वित्तीय लक्ष्य : किसी भी कार्य को करने से पहले हमारे पास एक एक लक्ष्य होना आवश्यक है ताकि उसकी प्राप्ति के लिए हम उस दिशा में कार्य कर सके. हमारे पास हमारा वित्ति लक्ष्य होना परम आवश्यक है.

2. 2. एक अच्छा, अनुभवी, योग्य और कुशल वित्तीय सलाहकार का चयन करें जो आपको आपके वित्ति लक्ष्य की प्राप्ति करवाने हेतु हर संभव प्रयास करें.

3. 3. अपनी वर्तमान वित्तीय स्थिति का निर्धारण करें और भविष्य में आपको किस स्थिति पर पहुंचना है इसके अंतर को समझें और लक्ष्य तक पहुंचने के रुप-रेखा तैयार करें.

4. 4. वित्तीय विकल्पों का मुल्यांकन कर निवेश करें.

5. 5. आवश्यकता अनुसार वित्तीय लक्ष्यों का विकास करें.

6. 6. कार्य की वित्तीय योजनाएं बनाएं और कार्यान्वित करें।

7. 7. समय-समय पर अपनी योजना का पुनर्मूल्यांकन अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए करते रहें

 

निजी/व्यक्तिगत वित्त का 50%, 30% व 20% का नियम :

1. इस नियम के अनुसार किसी व्यक्ति या परिवार को अपनी आय का 50 प्रतिशत अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए.

2. आय का 30 प्रतिशत इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाना चाहिए.

3.वही आय का 20 प्रतिशत बचत कर निवेश किया जाना चाहिए. आप अपनी बचत को फिजूलखर्ची को कम करके बड़ा सकते हैं. आप हर माह अपने अनावश्यक आर्थिक क्रियाओं को कागज़ पर लिख कर, हर माह कम करने का प्रयास कर सकते हैं. निजी/व्यक्तिगत वित्त का 50%, 30% व 20% के नियम का प्रयोग कर आप अपनी आय को बजट करते हुए अपनी भावी आर्थिक स्थिति को सुरक्षित कर सकते हैं.


 निजी/व्यक्तिगत वित्त के चार स्तंभ:

1. संपत्ति : संपत्ति का अर्थ स्वामित्व से लगाया जाता है जिसका अर्थ किसी चीज के मालिकाना अधिकार से होता है. संपत्ति दो प्रकार की होती है चल संपत्ति और अचल संपत्ति. चल संपत्ति को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है वही अचल संपत्ति को एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता है. संपत्ति के रूप में हम एकत्र करना चाहते हैं : ज़मीन, कार, इमारत, मशीनरी एवं संयंत्र, शेयर, बांड, ऋण पत्र, सोना आदि.  

2. ऋण : ऋण का तात्पर्य उधार लेने से है कई बार हम अपनी आर्थिक स्थिति के बेहतर करने के लिए ऋण लेते हैं. ऋण के आवश्यकता हमें समय-समय पर पड़ती रहती है.

3. आय : आय एक खर्च और बचत है जिसको एक निश्चित समय सीमा के भीतर मौद्रिक रूप में प्राप्त किया जाता हैं. आय से हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर व्यय करते हैं. वही कुछ पैसे अपने भविष्य के सुरक्षा के लिए बचत के रूप में रख लेते हैं. आय के 5 मुख्य स्रोत होते हैं:वेतन/मजदूरी, घरेलू संपत्ति  से आय, कारोबार या पेशे से लाभ, पूंजीगत लाभ और अंतिम अन्य स्रोत से आय.

4. व्यय: अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हम अपनी आय के जिस हिस्से को खर्च करते हैं उसे खर्च/खपत/व्यय कहते हैं. आय के एक बड़ा हिस्सा रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति पर किया जाता है.

 

निजी/व्यक्तिगत वित्त एक कला है :



निजी/व्यक्तिगत वित्त एक कला है जिसके कौशल से हम आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि इसके बिना व्यक्ति या परिवार पैसा तो पूरा जीवन कमा सकता है लेकिन कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। यही कारण है कि व्यक्तिगत वित्त महत्वपूर्ण है। सभी चीजों के बारे में शिक्षित होना और अपने स्वयं के घर का वित्तीय का प्रबंधन करने की कला, आपको सफलता की ओर ले जा सकती है.

जैसा कि हाल के वर्षों में उपभोक्ताओं की वित्तीय क्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ी हैं, विभिन्न प्रकार के शिक्षा कार्यक्रम सामने आए हैं, जो व्यापक दर्शकों या युवाओं और महिलाओं जैसे लोगों के एक विशिष्ट समूह को पूरा करते हैं। शैक्षिक कार्यक्रमों को अक्सर "वित्तीय साक्षरता" के रूप में जाना जाता है। हालांकि, 2008 के वित्तीय संकट के बाद तक व्यक्तिगत वित्त शिक्षा के लिए कोई मानकीकृत पाठ्यक्रम नहीं था। अमेरिकी लोगों के बीच वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित करने के लिए 2008 में वित्तीय क्षमता पर संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति की सलाहकार परिषद की स्थापना की गई थी। इसने वित्तीय शिक्षा के क्षेत्र में एक मानक विकसित करने के महत्व पर भी बल दिया.


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