National Engineer's Day 2022: क्या आप जानते हैं कि किसकी याद में मनाया जाता हैं Engineer's Day ?

 


हम अभियंता दिवस क्यों मनाते हैं?
(Why we celebrate Engineers Day?)


    इस दिन भारत के महान अभियंता (इंजीनियर) एवं भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जन्मदिन है. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या भारत के महान इंजीनियरों में से एक थे. इन्होंने ही आधुनिक भारत की रचना की और हमारे भारत को एक नया रूप दिया था. इसलिए 1968 में, भारत सरकार ने सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की जयंती को अभियंता दिवस (Engineer’s Day) के रूप में घोषित किया. इस साल एम विश्वेश्वरय्या की 160वीं जयंती है. एम. विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के मुद्दनहल्ली गांव में हुआ था. इस वर्ष राष्ट्रीय इंजीनियर दिवस गुरुवार, 15 सितंबर को मनाया जाएगा.


आइये जानते है एम. विश्वेश्वरय्या  बारे में 

(Let's know about M. Visvesvaraya):

    एम. विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के मुद्दनहल्ली गांव के एक तेलूगु परिवार में हुआ था. इनके पिता संस्कृत के विख्यात विद्वान थे. इनकी बाल्याकाल की शिक्षा- दीक्षा इनके जन्मस्थान पर ही हुई तथा आगे की पढाई के लिए इन्हें बंगलौर भेजा गया. परन्तु धन का आभाव होने के कारण इन्होंने ट्यूशन पढ़ा कर अपनी बी. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की.  प्रथम श्रेणी आने पर मैसूर सरकार द्वारा इनको स्कॉलरशिप प्राप्त हुई तब एम. विश्वेश्वरय्या जी ने  अपनी इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की. इंजीनियरिंग की पढाई में भी प्रथम श्रेणी प्राप्त करके, एम. विश्वेश्वरय्या महाराष्ट्र में सहायक इंजीनियर के पद नियुक्त हुए. विश्वेश्वरय्या लोगों की आधारभूत समस्याओं जैसे  बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा आदि को लेकर भी चिंतित थे. उस समय खेती के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था और कई बार वर्षा न होने पर भुखमरी जैसे हालातों का सामना करना पड़ता था. इनके प्रयासों से ही कर्नाटक में कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय और हैदराबाद की बाढ़ सुरक्षा प्रणाली बनाई गई है. बांध के बनने से खेती में सुधार हुआ.

     एम. विश्वेश्वरय्या का मानना था कि शिक्षा से ही किसी देश का विकास किया जा सकता है, और किसी देश के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है. शिक्षा के महत्व को समझते हुए इन्होंने अपने कार्यकाल में मैसूर में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दी और साथ ही विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ी. इनके द्वारा किये गए महान कार्यों के कारण ही इन्हें 1955  में अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया.


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