Teacher's Day 2022: आखिर पांच सितम्बर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस ?



शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है ? 




    प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है, 5 सितंबर 1888 के दिन भारत के पहले उप-राष्‍ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. वे खुद एक शिक्षक थे और ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने विद्यार्थियों से अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मानाने को कहा, तभी से इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. 
डॉ. राधाकृष्‍णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में तिरुमनी गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्हें बचपन से ही किताबे पढ़ने में रूचि थी.  उनका का निधन चेन्नई में 17 अप्रैल 1975 को हुआ था.


शिक्षक दिवस का महत्व :

विश्व के कुछ देशों में शिक्षकों (गुरुओं) को सम्मान देने के लिये  शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है. शिक्षक हमारे सहायक स्तंभ हैं जो हमारे पूरे विद्यार्थी जीवन में हमारा मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे हमारे आदर्श हैं. वे हमें जीवन में मूल्यवान सबक सिखाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं. 
प्रत्येक देश का भविष्य उसके बच्चों के हाथों में होता है शिक्षक ही  छात्रों के भविष्य को आकार देने और संबंधित करियर में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.
शिक्षक दिवस को विश्व के लगभग 100 से ज्यादा देशों में भिन्न - भिन्न तारीख पर मनाया जाता है। लेकिन, यूनेस्को ने आधिकारिक तौर पर 1994 में, 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में घोषित किया है.
कुछ देशों में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है जैसे- 
1. भारत
2. श्रीलंका
3. बांग्लादेश
4. पाकिस्तान 
5. ईरान
6. ऑस्ट्रेलिया
7. चाइना 
8. जर्मनी 
               
    कुछ  देशों में इस दिन छुट्टी रहती है जबकि कुछ देशों में इस दिन को कार्य-दिवस करते हुए मनाते हैं. इस दिन को देश भर में स्कूल, कॉलेजो और शैक्षणिक संस्थानों में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्कूल कॉलजों समेत अलग-अलग संस्थानों में शिक्षक दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं शिक्षक और छात्र इन कार्यक्रमो में भाग लेते हैं. 
इस अवसर पर विद्यार्थी अपने प्रिय शिक्षको को उपहार के रूप में ग्रीटिंग कार्ड, पेन डायरी इत्यादि देते हैं. शिक्षक भी उनको आगे बढ़ने और जीवन में उन्नति करने के लिए प्रोत्साहित करते है.
प्राचीन काल से यह माना जाता है कि गुरु का स्थान माता-पिता और भगवान से भी ऊंचा है.  जिसे 

कबीर दास जी का ये दोहा प्रामाणित करता है:


 "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय !
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय  !!"

    इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन है.  कबीर दास जी कहते हैं कि जब कभी ऐसी परिस्थिति आये की गुरु और गोविन्द (भगवान) एक साथ खड़े मिलें तब पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए. गुरु ने ही गोविन्द (भगवान) से हमारा परिचय कराया है इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द से भी सर्वोच्च है.

"गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै नमोष!
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष!!"

    उपर्युक्त पंक्तियो के अनुसार गुरु के बिना न ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और न ही मोक्ष मिलता है गुरु के ज्ञान से ही सत्य की प्राप्ति होती है और दोषो का निवारण होता है. आप सभी पाठकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.




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